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दि॒वो नो॑ वृ॒ष्टिं म॑रुतो ररीध्वं॒ प्र पि॑न्वत॒ वृष्णो॒ अश्व॑स्य॒ धाराः॑। अ॒र्वाङे॒तेन॑ स्तनयि॒त्नुनेह्य॒पो नि॑षि॒ञ्चन्नसु॑रः पि॒ता नः॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

divo no vṛṣṭim maruto rarīdhvam pra pinvata vṛṣṇo aśvasya dhārāḥ | arvāṅ etena stanayitnunehy apo niṣiñcann asuraḥ pitā naḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दि॒वः। नः॒। वृ॒ष्टिम्। म॒रु॒तः॒। र॒री॒ध्व॒म्। प्र। पि॒न्व॒त॒। वृष्णः॑। अश्व॑स्य। धाराः॑। अ॒र्वाङ्। ए॒तेन॑। स्त॒न॒यि॒त्नुना॑। आ। इ॒हि। अ॒पः। नि॒ऽसि॒ञ्चन्। असु॑रः। पि॒ता। नः॒ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:83» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:28» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह मेघ कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) वायुवद्वर्त्तमान मनुष्यो ! आप लोग (नः) हम लोगों के लिये (दिवः) सूर्य्य से (वृष्टिम्) वृष्टि को (ररीध्वम्) दीजिये तथा (वृष्णः) वर्षनेवाले (अश्वस्य) बड़े मेघ के (धाराः) प्रवाहों को (प्र, पिन्वत) सींचिये और जो (अर्वाङ्) नीचे वर्त्तमान और (एतेन) इस (स्तनयित्नुना) बिजुली रूप से (अपः) जलों को (निषिञ्चन्) अत्यन्त सेचन करता हुआ (असुरः) मेघ (नः) हम लोगों के (पिता) उत्पन्न करनेवाले पिता के सदृश पालन करनेवाला (आ, इहि) प्राप्त होता है, उसको आप लोग विशेष करके जनिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! जिन कर्म्मों से वृष्टि अधिक होवे, उन कर्म्मों का सेवन कीजिये ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सः मेघः कीदृश इत्याह ॥

अन्वय:

हे मरुतो ! यूयं नो दिवो वृष्टिं ररीध्वं वृष्णोऽश्वस्य धाराः प्र पिन्वत योऽर्वाङ् वर्त्तमान एतेन स्तनयित्नुनाऽपो निषिञ्चन्नसुरो नः पितेव पालको मेघ एहि तं यूयं विजानीत ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (दिवः) सूर्य्यात् (नः) अस्मभ्यम् (वृष्टिम्) (मरुतः) वायुवद्वर्त्तमाना मनुष्याः (ररीध्वम्) दत्त (प्र) (पिन्वत) सिञ्चत (वृष्णः) वर्षकस्य (अश्वस्य) महतः। अश्व इति महन्नामसु पठितम्। (निघं०३.३) (धाराः) प्रवाहान् (अर्वाङ्) अधो वर्त्तमानः (एतेन) (स्तनयित्नुना) विद्युद्रूपेण (आ) (इहि) आगच्छन्ति। अत्र व्यत्ययः। (अपः) जलानि (निषिञ्चन्) नितरां सेचनं कुर्वन् (असुरः) मेघः। असुर इति मेघनामसु पठितम्। (निघं०१.१) (पिता) जनक इव पालकः (नः) अस्माकम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! यैः कर्मभिर्वृष्टिरधिका भवेत्तानि कर्म्माणि सेवध्वम् ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो! ज्या कार्याने वृष्टी अधिक होईल असे कर्म करा. ॥ ६ ॥